भारत की स्थिति व सीमाए
भारत एशिया महाद्वीप का एक देश है , जो एशिया के दक्षिणी भाग में हिन्द महासागर के शीर्ष पर तीन ओर समुद्रों से घिरा हुआ है । पुरा भारत उत्तरी गोलार्द्ध में पड़ता है । भारत का अक्षांशीय विस्तार 8°4 ' उत्तरी अक्षांश 37°6 ' उत्तरी अक्षांश तक है । भारत का देशान्तर विस्तार 68°7' पूर्वी देशान्तर से 97°25' पूर्वी देशान्तर तक है । भारत का क्षेत्रफल 3287263 वर्ग किमी . है ।
क्षेत्रफल की दृष्टि से संसार में भारत का सातवाँ स्थान है । यह रूस के क्षेत्रफल का लगभग 1/5 . सं . रा . अमेरिका के क्षेत्रफल का 1/3 तथा ऑस्ट्रेलिया के क्षेत्रफल का 2/5 है ।
जनसंख्या की दृष्टि से संसार में भारत का चीन बाद दूसरा स्थान है । विश्व का 2.4 % भूमि भारत के पास है जबकि विश्व की लगभग 17.5 % जनसंख्या भारत में रहती है ।
भारत के उत्तर में नेपाल , भूटान व चीन , दक्षिण में श्रीलंका एवं हिन्द महासागर , पूरब में बांग्लादेश , म्यांमार एवं बंगाल की खाड़ी तथा पश्चिम में पाकिस्तान एवं अरब सागर है । भारत को श्रीलंका से अलग करने वाला समुद्री क्षेत्र मन्नार खाडी ( Gulf of Mannar ) तथा पाक जलडमरूमध्य ( Palk Strait ) है ।प्रायद्वीप भारत का दक्षिणतम बिन्दु - कन्याकुमारी है भारत को सुदूर दक्षिणतम बिन्दु - इन्दिरा प्वाइंट ( गेट निकोबार में है ) । भारत का उत्तरी अन्तिम विन्दु - इंदिरा कॉल है ।
कर्क रेखा ( Tropic of Cancer ) भारत के बीचो - बीच से गुजरती है।
भारत को पाँच प्राकृतिक भागों में बाँटा जा सकता है ।
1.उत्तर का विशाल मैदान
2.दक्षिण का प्रायद्वीपीय पठार
3.समुद्रतटीय मैदान
4.थार मरुस्थल
5.उत्तर का पर्वतीय प्रदेश
मुख्य बिन्दु -भारत का मानक समय ( Indian Standard Time ) इलाहाबाद पास नैनी से लिया गया है , जिसका देशान्तर 82°30 ' पूर्वी है वर्तमान में मिर्जापुर ) यह ग्रीनविच माध्य समय ( GMT ) से 5 घण्टे 30 मिनट आगे है ।
भारत की लम्बाई उत्तर से दक्षिण तक 3214 किमी . तथा पूर्व से पश्चिमी तक 2933 किमी . है ।
भारत की समुद्री सीमा 7516 . 6 किमी . लम्बी है जबकि स्थलीय सीमा की लम्बाई 15 , 200 किमी . है ।
भारत मुख्य भूमि की तटरेखा 6,100 किमी . है ।
क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य है ।
जनसंख्या की दृष्टि से उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है ।
क्षेत्रफल की दृष्टि से गोवा भारत का सबसे छोटा राज्य है ।
जनसंख्या की दृष्टि से सिक्किम भारत का सबसे छोटा राज्य है ।
क्षेत्रफल की दृष्टि से अण्डमान - निकोबार द्वीप समूह सबसे बड़ा केन्द्र शासित प्रदेश है ।
क्षेत्रफल की दृष्टि से लक्षद्वीप सबसे छोटा प्रदेश है जनसंख्या की दृष्टि से दिल्ली सबसे बड़ा केंद्र शासित प्रदेश हैं ।
जनसंख्या की दृष्टि से लक्षद्वीप सबसे छोटा केन्द्र शा प्रदेश है ।मध्य प्रदेश भारत का सबसे बड़ा पठारी राज्य हैं।
राजस्थान भारत का सबसे बड़ा मरुस्थलीय राज्य है ।
मध्य प्रदेश में वन ( जंगल ) सबसे अधिक है ।
भारत में द्वीपों की कुल संख्या 248 है ।बंगाल की खाड़ी में 223 तथा अरब सागर में 25 द्वीप हैं ।
भारत के सबसे दक्षिणी छोर का नाम ' इन्दिरा प्वाइंट ' है और यह बंगाल की खाड़ी में ग्रेट निकोबार ( Great Nicobar ) द्वीप पर स्थित है ।
भारत का सबसे उत्तरी बिन्दु इन्दिरा कॉल , जम्मू - कश्मीर में स्थित है ।
पूर्वी घाट को कोरमण्डल तट के नाम से जाना जाता है।
पश्चिमी घाट को मालाबार तट के नाम से जाना जाता है।
भारत के जिन राज्यों में से होकर कर्क रेखा गुजरती है वे हैं - गुजरात , राजस्थान , मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ झारखण्ड , पश्चिमी बंगाल , त्रिपुरा और मिजोरम् ।
भारतीय मानक समय की देशांतर रेखा ( 82°50 ' ) उत्तर प्रदेश मध्य छत्तीसगढ़ , उड़ीसा एवं आन्ध्रप्रदेश से गुजरती है ।
उत्तर प्रदेश की सीमा सबसे अधिक राज्यों ( 8 ) को छूती है - उत्तरांचल , हिमाचल प्रदेश , हरियाणा , राजस्थान , मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ , झारखण्ड एवं बिहार ।
भारत में सर्वाधिक नगरों वाला राज्य उत्तर प्रदेश है जबकि मेघालय में सबसे कम नगर हैं ।
भारत में सर्वाधिक नगरीय जनसंख्या वाला राज्य महाराष्ट्र जबकि सबसे कम नगरीय जनसंख्या सिक्किम में है ।
भारत में कार्यशील व्यक्तियों की जनसंख्या 4 .02 करोड़ है ।
भारत में सड़क मार्ग की कुल लम्बाई 18,43,420
किमी है।
भारत का सबसे लम्बा राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 7है जो बनारस से कन्याकुमारी तक जाता है ( 2369 किमी . ) ।
भारत रेलमार्ग की कुल लम्बाई 64 , 140 किमी . है ।
तिरुअनन्तपुरम एवं कोचीन ( केरल ) नगरों मानसून सर्वप्रथम वर्षा होती है ।
हिमालय पर्वत -हिमालय ( हिम + आलय ) का अर्थ है ' हिम का घर Abode of snow ) इसकी कुल लम्बाई लगभग 5000 किमी है तथा इसकी औसत ऊँचाई 2000 मीटर है । इसकी औसत चौड़ाई 240 किमी . है तथा क्षेत्रफल लगभग 5 लाख वर्ग किमी का है।
माउण्ट एवरेस्ट नेपाल 8,850 मीटर
कंचनजंगा भारत 8,598 मीटर
मकालू नेपाल 8,481 मीटर
धौलागिरि नेपाल 8,172 मीटर
नंगा पर्वत भारत 8,126 मीटर
अन्नपूर्णा नेपाल 8,078 मीटर
नन्दा देवी भारत 7,817 मीटर
नामचबरवा तिब्बत 7,756 मीटर
1.महान या वृहत हिमालय या हिमाद्रि-
( The Great Himalayas or The Himadri ) इसकी औसत ऊँचाई 6000 मीटर है | यह हिमालय पर्वत की सबसे उत्तरी एवं सबसे ऊँची श्रेणी है । हिमालय के सभी सर्वोच्च शिखर इसी श्रेणी में हैं , जैसे - एवरेस्ट(8850 मी ) , कंचनजंगा (8598 मी) , मकालू (8481 मी) , धौलागिरी (8172 मी) , चोओऊ (8153 मी) , नंगा पर्वत (8126 मी ) , अन्नपूर्णा ( 8078 मी) , नन्दा देवी (7817 मी ) आदि । इनमें कचनजंगा , नंगापर्वत और नन्दादेवी भारत की सीमा में हैं और शेष नेपाल में हैं । इस श्रेणी में भारत के प्रमुख दर्रे अवस्थित हैं । इनमें शिपकी ला और बारालाचा ला हिमाचल प्रदेश में , बर्जिला और जोजिला कश्मीर में , नीति ला , लिपुलेख और थाग ला उत्तरांचल में तथा जेलेप ला और नाथू ला सिक्किम में स्थित हैं ।
माउन्ट एवरेस्ट - 8850 मीटर ( इसे नेपाल में सागर माथा व चीन में क्योमोलांगमा कहते हैं । ) यह दुनिया की सबसे ऊँची चोटी है ।
कंचनजंगा - 8598 मीटर ( यह भारत में हिमालय सबसे ऊँची चोटी है - सिक्किम में ) ।
2 .लघु हिमालय - मध्य हिमालय या हिमाचल ( Outer Himalayas or The Shiwaliks - यह हिमालय की सबसे दक्षिणी श्रेणी है । इसकी औसत ऊँचाई 1000 मी . है । इसमें मिटटी और ककड़ के बने ऊचे मैदान मिलते हैं जिन्हें दुन या द्वार कहते हैं ( Dehradun , Haridwar ) इसके पश्चात् भारत के विशाल मैदान की शुरुआत होती है
नोट - भारत की सबसे ऊँची चोटी के - 2 ( काराकोरम ) गॉडविन ऑस्टिन है ( ऊँचाई : 8611 . ) काराकोरम श्रेणी में है न कि हिमालय में । यह पाक - अधिकृत कश्मीर में है तथा वृहत् हिमालय के उत्तर में स्थित हैं । हिमालय के अलावा उत्तर - पूर्व भारत में कुछ अन्य पर्वत श्रेणियाँ भी हैं जस्कर व लद्दाख श्रेणी - कश्मीर में पटकई , लुशाई , गारो , खासी , जयन्तिया , बुम , मीजो श्रेणी - पूर्वी राज्यों में ।
3.प्रायद्वीपीय पर्वत- अरावली पर्वत के यह राजस्थान से लेकर दिल्ली के दक्षिण - पश्चिम तक विस्तृत है । इनकी कुल लम्बाई लगभग 880 किमी . है । यह विश्व की सबसे पुरानी पर्वतमाला है । गुरु शिखर 1722 मीटर इनकी सबसे ऊँची चोटी है । इस पर प्रसिद्ध पर्यटन - स्थल माउण्ट आबू स्थित है ।
विन्ध्याचल पर्वत - यह पर्वतमाला पश्चिम में गुजरात से लेकर पूर्व में उत्तर - प्रदेश तक जाती है । यह विन्ध्याचल , भारनेर , कैमूर व पारसनाथ पहाड़ियों का सम्मिलित रूप है । विन्ध्याचल पर्वत ही उत्तर व दक्षिण भारत को स्पष्ट रूप से अलग करता है । इसकी औसत ऊँचाई 900 मी . है ।
सतपुड़ा पर्वत- सतपुड़ा पश्चिम में राजपीपला से आरम्भ होकर छोटा नागपुर के पठार तक विस्तृत है । महादेव और मैकाल पहाड़ियाँ भी इस पर्वतमाला का हिस्सा हैं । 1350 मी . ऊँची धूपगढ़ चोटी इसकी सबसे ऊँची चोटी है ।
पश्चिमी घाट या सहयाद्रि - इसकी औसत ऊँचाई 1200 मीटर है और यह पर्वतमाला 1600 किमी . लम्बी है । इस श्रेणी में दो प्रमुख दरें हैं - थालघाट ( यह नासिक को मुम्बई से जोड़ता हैं ) एवं भोरघाट ( इससे मुम्बई - कोलकाता रेलमार्ग गुजरता है ) । तीसरा दर्रा पालघाट ( इससे तमिलनाउ व केरल जुड़ते हैं ) इस श्रेणी के दक्षिणी हिस्से को मख्य श्रेणी से अलग करता है ।
पूर्वी घाट - इसकी औसत ऊँचाई 615 मीटर है और श्रेणी 1300 किलोमीटर लम्बी है । पूर्वी घाट के अंतर्गत दक्षिण से उत्तर की और पहाडियों को पालकोंडा , अन्नामलाई , जावादा और शिवराय की पहाड़ियों के नाम से जाना जाता है। इस श्रृंखला की सबसे ऊँची चोटी महेन्द्रगिरी 1501 मीटर ) है ।
नीलगिरि या नीले पर्वत- नीलगिरि की पहाड़ियाँ , पश्चिमी घाट व पूर्वी घाट की मिलन स्थली है । नीलगिरि की सबसे ऊँची चोटी दोदाबेट्टा ( Doddabetta ) है ।
नोट-
सुदूर - दक्षिण में इलायची की पहाड़ियाँ हैं इन्हें इल्लामलाई पहाड़ी भी कहते हैं । प्रायद्वीपीय भारत का सबसे ऊँची चोटी अन्नाईमुडी ( 2695 मीटर ) है जो अन्नामलाई पहाड़ियों में है ।
भारत के प्रमुख दर्रे
कराकोरम दर्रा - यह जम्मू - कश्मीर राज्य के लद्दाख क्षेत्र कराकोरम श्रेणियों में स्थित है । इसकी समुद्र तल से ऊँचाई , 5654 मीटर है ।
जोजिला दर्रा - यह जम्मू - कश्मीर राज्य के जासकर श्रेणी में स्थित है । श्रीनगर से लेह जाने का मार्ग इसी दर्रे से गुजरता है । इसकी ऊँचाई 3529 मीटर है ।
पीरपांजाल दर्रा - यह जम्मू - कश्मीर राज्य के दक्षिण - पश्चिम में स्थित है । यह पीरपांजाल के मध्य 3494 मीटर ऊँचा है ।
बानिहाल दर्रा - यह जम्मू - कश्मीर राज्य के दक्षिण - पश्चिम पीरपांजाल श्रेणियों में स्थित है । इसकी ऊँचाई 2882 मीटर है जम्मू से श्रीनगर का मार्ग इसी दरें से गुजरता है ।
शिपकीला दर्रा - यह दर्रा हिमाचल प्रदेश राज्य के जास्कर श्रेणी में स्थित है । इस दरें से होकर शिमला से तिब्बत जाने का मार्ग है ।
रोहतांग दरा - हिमाचल प्रदेश में पीरपांजाल श्रेणियों दर्रा स्थित है । इसकी ऊँचाई 4631 मीटर है ।
बाड़ालाचा दर्रा - यह हिमाचल प्रदेश में जासकर श्रेणी में स्थित है । इसकी ऊँचाई 4512 मीटर है । मंडी से लेह जाने वाला मार्ग इसी दर्रे से होकर गुजरता है ।
माना दर्रा - यह उत्तराखण्ड के कुमायूं श्रेणी में स्थित है । इस दर्रे से होकर भारतीय तीर्थयात्री मानसरोवर झील और कैलाश पर्वत के दर्शन हेतु जाते हैं ।
नीति दर्रा - यह दर्रा भी उत्तराखण्ड के कुमायूं श्रेणी स्थित है । यह 5389 मीटर ऊँचा है । यहाँ से भी मानसरोवर झील व कैलाश घाटी जाने का रास्ता खुलता है ।
नाथुला दर्रा - यह सिक्किम राज्य में डोगेक्या श्रेणी में स्थित है । भारत एवं चीन के बीच युद्ध में यह अपने सामरिक महत्व के कारण अधिक चर्चा में रहा । यहाँ से दार्जिलिंग और चुंबी घाटी होकर तिब्बत जाने का मार्ग है । ।
जेलेपला दर्रा - यह दर्रा भी सिक्किम राज्य में है । भूटान जाने वाला मार्ग इसी दर्र से होकर गुजरता हैं ।
बोमडिला दर्रा - यह अरुणाचल प्रदेश के उत्तर - पश्चिमी भाग में स्थित है । बोमडिला से तवांग होकर तिब्बत जाने का मार्ग है ।
यांग्याप दर्रा - अरुणाचल प्रदेश के उत्तर - पूर्व में स्थित इस दर्रे के पास से ही ब्रह्मपुत्र नदी गुजरती है । यहाँ से चीन के लिए भी मार्ग खुलता है । ।
दिफू दर्रा - अरुणाचल प्रदेश के पूर्व में भारत - म्यांमार सीमा पर यह दर्रा स्थित है ।
थाल घाट - यह महाराष्ट्र राज्य के पश्चिमी घाट की श्रेणियों में स्थित है । इसकी ऊँचाई 583 मीटर है । यहाँ से होकर दिल्ली - मुंबई के प्रमुख रेल व सड़क मार्ग गुजरते हैं
भोरघाट - यह दर्रा भी महाराष्ट्र राज्य के पश्चिमी घाट श्रेणियों में स्थित है । पुणे - बेलगाँव रेलमार्ग और सड़क मार्ग इसी दर्रे से गुजरते हैं ।
पालघाट - यह केरल राज्य के मध्य पूर्व में नीलगिरि की पहाड़ियों में स्थित है । इसकी ऊँचाई 305 मीटर है। कालीकट – त्रिचूर से कोयंबटूर - इंदौर के रेल व सड़क मार्ग इसी दरें से होकर गुजरते हैं । " )
भारत के विशाल मैदान
भारत का विशाल मैदान विश्व के सबसे अधिक उपजाऊ व घनी आबादी वाले भू – भागों में से एक है ।इस विशाल मैदान का निर्माण नदियों द्वारा बहाकर लाये गये निक्षेपों से हुआ है ।इसकी मोटाई गंगा के मैदान में सबसे ज्यादा व पश्चिम में सबसे कम है ।इसकी पश्चिमी सीमा राजस्थान मरुभूमि में विलीन हो गयी है ।
केरल में इन मैदानों में समुद्री जल भर जाता है और ये लैगून बन जाते हैं । यहाँ इन्हें कयाल ( Kayals or Backwaters ) कहा जाता है । इनमें सबसे बड़ा लैगून वैम्बानद झील ( Vembanad संमद्ध है । जो केरल में स्थित है ।
मिट्टी की विशेषता और ढाल के आधार पर इन्हें प्रमुख तौर पर चार भागों में बाँटा गया है
भाभर प्रदेश - हिमालयी नदियों द्वारा पर्वतीय क्षेत्रों से टूटकर गिरे पत्थरों - कंकड़ों को लाने से बना मैदान भाभर कहलाता है । इसमें पानी धरातल पर नहीं ठहरता है ।
तराई प्रदेश - भाभर से नीचे तराई प्रदेश फैला रहता है । यह निम्न समतल मैदान है , जहाँ नदियों का पानी इधर - उधर दलदली क्षेत्रों का निर्माण करता है ।
बांगर प्रदेश - यह नदियों द्वारा लाई गयी पुरानी जलोढ़ मिट्टी से निर्मित होता है । इसमें कंकड़ भी पाये जाते हैं जो कैल्शियम से बने होते हैं ।
खादर प्रदेश - यह प्रत्येक वर्ष नदियों द्वारा लाई मिट्टी से निर्मित होता है । इसकी उर्वरा शक्ति सबसे ज्यादा होती है ।
भारत के द्वीप समूह
अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह -
यह द्वीप समूह बंगाल की खाड़ी में स्थित है ।अण्डमान समूह में 204 द्वीप है , जिनमें मध्य अण्डमान ( Middle Andaman ) सबसे बड़ा है ।यह विश्वास किया जाता है कि ये द्वीप समूह देश के उत्तर - पूर्व में स्थित पर्वत श्रृंखला का विस्तार है ।उत्तर अण्डमान में स्थित कैडल पीक ( Sadale Peak ) सबसे ऊँची ( 737 मीटर ) चोटी है ।
निकोबार समूह में 19 द्वीप हैं जिनमें ग्रेट निकोबार सबसे बड़ा है ।
ग्रेट निकोबार सबसे दक्षिण में स्थित है और इण्डोनेशिया के सुमात्रा द्वीप से केवल 147 किमी . दूर हैं ।बेरन ( Barren ) एवं नारकोन्डम ( Narcondam ज्वालामुखीय द्वीप हैं जो अंडमान निकोबार द्वीप समूह में स्थित है डंकन पैसेज ( Duncan Passage ) दक्षिण अण्डमान एवं लिटिल अण्डमान के बीच है ।10 डिग्री चैनल लिटिल अण्डमान एवं कार निकोबार के बीच है । यह अण्डमान को निकोबार से अलग करता है ।
लक्ष्यद्वीप समूह
ये द्वीप अरब सागर में स्थित है ।इस समूह में 25 द्वीप हैं । ये सभी मूंगे के द्वीप Coral Islands ) हैं एवं प्रवाल भित्तियों ( Coral Reefs ) में घिरे हैं ।इनमें तीन द्वीप मुख्य हैं - लक्षद्वीप ( उत्तर में ) मिनीकॉय ( दक्षिण में ) , कावारत्ती ( मध्य में ) ।9 डिग्री चैनल कावारत्ती को मिनीकॉय से अलग करती है ।8 डिग्री चैनल मिनीकॉय द्वीप ( भारत ) मालदीव से अलग करता है ।
हिमनद ( Glacier )
हिमनद ( Glacier ) एक बर्फ संहति है जो उच्च स्थल से निम्न स्थल की ओर धीरे - धीरे खिसकती रहती है ध्रुवीय क्षेत्रों के बाहर भीतर में ( काराकोरम तथा हिमालय | श्रेणियों ) विश्व के सबसे बड़े ग्लेशियर मिलते हैं । काराकोरम श्रेणी के कुछ मुख्य ग्लेशियर निम्न हैं सियाचिन ( विश्व में सबसे बड़ा ) - 72 वर्ग किलोमीटर ( क्षेत्रफल )फेडचिनको ( Fedchenko ),हिस्पर ( Hispar ),बियाफो ( Biafo ),बलतोरो ( Baltoro )
भारत : नदी प्रणाली
भारत में नदियों को मुख्य रूप से दो भागों में विभक्त किया जा सकता है
1. हिमालयीन नदियाँ 2. प्रायद्वीपीय नदियाँ
हिमालयीन नदियाँ--
हिमालय से निकलने वाली नदियाँ बारह मास प्रवाहित होती हैं ( Perennial Rivers ) इसकी कुछ प्रमुख नदियाँ निम्न हैं-
1. सिन्धु नदी तंत्र
सिन्धु नदी का उद्गम स्थित स्थल तिब्बत ( चीन ) में मानसरोवर झील के पास स्थित सानोख्वाब हिमनद ( Glacier ) है ।इस नदी की लंबाई 2880 किमी . है , जबकि भारत इसकी लंबाई 709 किमी . है । यह अंततः पाकिस्तान से होकर अरब सागर में विलीन हो जाती है ।सिंधु नदी के साथ बहने वाली सहायक नदियों जम्मू - कश्मीर की नदियाँ हैं - गरतांग , श्योक , शिगार , नुब्रा , गिलगित ।पंजाब - हरियाणा का मैदान - इस मैदान का निर्माण सतलज, रावी और व्यास नदियों द्वारा हुआ है । इसकी औसत उचाई 250 मीटर है । यह मैदान मुख्यतः बांगड़ से निर्मित है इस मैदान में नदियों के किनारे बाढ़ से प्रभावित एक संकरी पेटी पाई जाती है । जिसे बेट कहा जाता है । दो नदियों के बीच की भूमि को दोआब कहा जाता है । .
विष्ट दोआब : व्यास एवं सतलज के बीच .
बारी दोआब : व्यास एवं रावी के बीच 3 . रचना दोआब : रावी एवं चेनाव के बीच
चाज दोआब : चेनाब एवं झेलम के बीच
सिंध सागर दोआब : झेलम , चेनाब एवं सिंधु के बीच
नोट : सतलज नदी तिब्बत के नारी खोरसन ( Nari Khorsan ) प्रांत में एक असाधारण कैनियन का निर्माण करती है जो कोलांराडो नदी ( अमेरिका ) के ग्रांड केनयन ( Grand Canyon ) के समान है ।
सन् 1960 ई . में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई । सिंधु जल संधि के अनुसार , भारत सिंधु , झेलम और चिनाब नदियों का केवल 20 % जल ही उपयोग में ला सकता है ।झेलम का संस्कृत नाम वितस्ता है , चिनाब का अस्किनी अथवा चंद्रभागा , रावी का पुरूष्णी अथवा इरावती , व्यास का विपासा अथवा अर्गिकिया तथा सतलज का शतुन्द्री।
2.गंगा नदी तंत्र
गंगा नदी नाम देवप्रयाग में प्राप्त करती है जहाँ भागीरथी ( उद्गम स्थल - गंगोत्री ) अलकनन्दा ( उद्गम स्थल - बद्रीनाथ ) से मिलती है ।इससे पहले अलकनन्दा में मन्दाकिनी ( उद्गम स्थल केदारनाथ ) से मिलती है ।गंगा नदी की कुल लम्बाई 2525 किमी . है , जिसमें से उत्तरांचल तथा उत्तर प्रदेश में 1450 किमी . , बिहार में 445 किमी . तथा पश्चिम बंगाल में 520 किमी . है ।यमुना , गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी है । चंबल सिंध , बेतबा और केन इसकी स्वयं की सहायक नदियाँ हैं । हुगली नदी ( कोलकता में ) गंगा की एक प्रमुख वितरिका ( Distributary ) है ।गंगा को बांग्लादेश में पद्मा के नाम से जाना जाता है पदमा , ब्रह्मपुत्र ( जिसका बंग्लादेश में नाम – जमुना है ) से मिल जाती है और बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है गंगा व ब्रह्मपुत्र बांग्लादेश में विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा सन्दरवन डेल्टा का निर्माण करती है ।बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले पद्मा में से मेघना Meghna } नामक एक प्रमुख वितरिका निकलती है ।
3.ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र
यह 2900 किमी . लंबी नदी मानसरोवर झील के पास स्थित चीमायुगढुंग हिमानी से निकलती है ।तिब्बत ( चीन ) में इसका नाम सांग्पो ( Tsang po ) एवं भारत में प्रवेश करने पर अरूणाचल प्रदेश में दिहांग ( Dihang ) है ।असम में इसे ब्रह्मपुत्र कहा जाता है और बांग्लादेश जमुना कहा जाता है ।इसकी सहायक नदियाँ सुबनसेरी , कामेंग , धनसीरी , मानस , तीस्ता आदि हैं ।गंगा व ब्रह्मपुत्र विश्वका सबसे बड़ा डेल्टा ( सुन्दरवन बनाती हैं ।
यह ध्यान देने योग्य बात है कि भारत में बहने के अनुसर सबसे लम्बी नदी गंगा है और भारत में प्रवाहित होने वाली नदियों की कुल लंबाई के आधार पर ब्रह्मपुत्र सबसे लंबी नदी है । ब्रह्मपुत्र भारत की सबसे बड़ी नदी ( Largest river of India ) ( जल की मात्रा के हिसाब से ) है ।
प्रायद्वीपीय नदियाँ
इनमें से लगभग सभी नदियाँ मौसमी ( Seasonal ) होती हैं अर्थात् लगातार बारह महीने नहीं बहती बल्कि बारिश पर निभर होती हैं ।इन्हें दो भागों में बाँटा जा सकता है - पूर्वी प्रवाह वाली नदियाँ तथा पश्चिमी प्रवाह वाली नदियाँ ।
पूर्वी प्रवाह वाली नदियाँ
ये सभी नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं और डेल्टा बनाती हैं ।गोदावरी को वृद्ध गंगा या दक्षिणी गंगा भी कहा जाता है । इसकी सहायक नदियाँ - मंजरा , पैनगंगा वर्धा , इंद्रावती , वेनगंगा , शबरी आदि है ।महानदी की सहायक नदियाँ - ईब , सेओनाथ , हसदो , मांड , जोंक , तेल आदि हैं ।कृष्णा की सहायक नदियाँ - कोयना , दूधगंगा पंचगंगा , भीमा , तुंगभद्रा , भूसी है ।कावेरी दूसरी नदियों के मुकाबले कम मौसमी प्रकृति की हैं अर्थात् इसमें अधिक समय तक पानी रहता है । इसका कारण है कि इसका ऊपर का हिस्सा गर्मियों दक्षिण - पश्चिमी मानसून से और नीचे का हिस्सा सर्दियों लौटते हुए उत्तर – पूर्वी मानसून जल प्राप्त करता है । यह भारत की सबसे ज्यादा प्रयोग में लायी गई ( Most Harnessed ) नदी है । इसकी 90 95 % सिंचाई व जल - शक्ति क्षमता प्रयोग में ली चुकी है ।कावेरी की सहायक नदियाँ - हेमवती , लोकपावनी , शिमसा , लक्ष्मणतीर्थ आदि है ।इनके अलावा सुवर्ण रेखा और ब्राह्मणी नामक छोटी नदियाँ भी रांची के पठार से निकल कर बंगाल की खाड़ी में गिरती है । ये हुगली व महानदी डेल्टाओं के बीच डेल्टा बनाती है ।
पश्चिमी प्रवाह वाली नदियाँ
ये पश्चिम की ओर बहती है तथा डेल्टा नहीं बनाती | इनमें प्रमुख नदियाँ हैं|नर्मदा भेडाघाट ( मध्य प्रदेश ) में धुआँदार नामक झरने Dhuandhar falls ) का निर्माण करती हैं । इसी मुख्य सहायक नदियाँ - हिरन , बुनेर , बंजर ,शेर ,शक्कर तवा आदि हैं ।ताप्ती या तापी को नर्मदा की जुड़वाँ नदी के रूप में । जाना जाता है । इसकी सहायक नदियाँ - पुरना | बैतूल , अरूणावती , गंजल आदि हैं ।लूनी को लवण नदी ( Salt River ) के नाम से जाना । जाता है ।श्रावती ( Sharavati ) नदी पश्चिमी घाट से निकलती हैं । यह प्रसिद्ध जोग या गोरसप्पा जल प्रपात बनाती हैं जो भारत में सबसे ऊँचा ( 289 मीटर ) जल प्रपात है।
अंतःस्थलीय नदियाँ
कुछ नदियाँ ऐसी होती है जो सागर तक नहीं । पहुंच पाती और रास्ते में ही लुप्त हो जाती हैं । ये अंतःस्थलीय ( Inland drainage ) नदियाँ कहलाती है ।घग्घर ( Ghaggar ) नदी इसका मुख्य उदाहरण हैं । यह एक मौसमी नदी हैं जो हिमालय की निचली ढालों से ( कालका के समीप ) निकलती है और अनुमानगढ़ ( राजस्थान ) में लुप्त हो जाती हैं । घग्घर को ही वैदिक काल की सरस्वती माना जाता है ।अन्य उदाहरण - लूनी , कांतली , सावी , काकनी आदि
झील
चिल्का झील ( उड़ीसा ) भारत की सबसे बड़ी लेंगून झील है । वुलर झील ( जम्मू - कश्मीर ) मीठे पानी की सबसे बड़ी झील है लोनार झील ( महाराष्ट्र ) ज्वालामुखी क्रिया से निर्मित है । भारत की सबसे ऊँची हिमानी – निर्मित झील देवताल झील है । यह गढ़वाल हिमालय में स्थित है । सांभर झील ( राजस्थान ) से नमक का औद्योगिक उत्पादन किया जाता है ।
भारत की प्रमुख झीलें
चिल्का झील उड़ीसा
सांभर झील राजस्थान
हुसैन सागर झील आन्ध्र प्रदेश
डल झील जम्मू - कश्मीर
वूलर झील जम्मू - कश्मीर
डीडवाना झील राजस्थान
कोलेरू झील आन्ध्र प्रदेश
पुलीकट झील तमिलनाडु
शेषनाग झील जम्मू - कश्मीर
मानसबल झील जम्मू - कश्मीर
बेम्बनाद झील केरल
जयसमंद झील राजस्थान
नक्की झील राजस्थान
लोकटक झील मणिपुर ।
नोट: भारत में मानव निर्मित सबसे बड़ी झील इन्दिरा सागर है , जो ओंकालेश्वर , महेश्वर तथा सरदार सरोवर बांध परियोजना ( गुजरात - मध्य प्रदेश ) का जलाशय है ।
भारत : जलवाय
भारत के जलवायु प्रदेश
अनेक विद्वानों ने भारत को जलवायु प्रदेशों विभाजित करने का प्रयास किया है । इन प्रयासों में ट्रेवार्था ( Trevartha ) का जलवायु प्रादेशीकरण काफी प्रचलित इस वर्गीकरण के आधार भारत को निम्नलिखित जलवायु प्रदेशों में विभाजित किया जा सकता है ।
1.ऊष्णकटिबंधीय वर्षावन जलवायु -
देश के उत्तरी - पूर्वी भाग तथा पश्चिमीतटीय मैदान इस प्रदेश के अंतर्गत आते हैं । इन क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा 200 सेमी . ( कुछ क्षेत्रों में 800 सेमी . ) से अधिक होती है तथा तापमान वर्षभर 18.2° से . से अधिक रहता है । इस ऊष्ण जलवायु प्रदेश के कुछ भागों में तापमान वर्षभर 29° से . तक पाए जाते हैं । देश का सर्वाधिक वर्षा का स्थान मासिनराम , जो चेरापुंजी के निकट मेघालय में है , इसी प्रदेश में स्थित है । इन क्षेत्रों में ऊँची आर्द्रता वनस्पति की वृद्धि के लिए अनुकूल है । इन क्षेत्रों में प्राकृतिक सघन वर्षा वन है तथा ये वन सदाहरति होते हैं ।
2.ऊष्ण कटिबंधीय सवाना जलवाय -
सहयाद्रि के वृष्टि छाया में आने वाले अर्द्ध शुष्क जलवायु के क्षेत्र को छोड़कर लगभग पूरे प्रायद्वीपीय पठार में इस प्रकार की जलवायु पाई जाती है । इस क्षेत्र में भी औसत मासिक तापमान 18.2° से . से अधिक रहता है । वार्षिक तापांतर ऊष्णकटिबंधीय वर्षा वनों के क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक ऊँचा होता है । वर्षा की मात्रा भी न केवल कम है बल्कि वर्षा ऋतु भी अपेक्षाकृत छोटी होती है । वर्षा की औसत वार्षिक मात्रा पश्चिम में 76 सेमी . से पूर्व में 152 सेमी . के बीच होती है । इन क्षेत्रों की वनस्पति में वर्षा की मात्रा के अनुसार विभिन्नता पाई जाती है । अपेक्षाकृत नम क्षेत्रों में पतझड़ वाले वन पाए जाते हैं तथा अपेक्षाकृत शुष्क क्षेत्रों की वनस्पति काँटेदार झाड़ियों तथा पर्णपाती वृक्षों का सम्मिश्रण होती है ।
3 . ऊष्णकटिबंधीय अर्द्धशुष्क स्टेपी जलवायु -
यह जलवायु मध्य महाराष्ट्र से तमिलनाडु तक विस्तृत वृष्टि छाया की पेटी में पाई जाती है । कम तथा अनिश्चित वर्षा इस जलवायु की प्रमुख विशेषता हैं । औसत वार्षिक वर्षा 38 . 1 सेमी . से 72 . 2 सेमी . है तथा तापमान दिसंबर में 20° से . से 28.8° से . के मध्य रहता हैं ग्रीष्मकाल में औसत मासिक तापमान 32.8° से . तक चला जाता है । वर्षा की सीमित मात्रा तथा अत्यधिक अनियमितता के कारण ये क्षेत्र सूखाग्रस्त रहते हैं जिससे इस क्षेत्र में कृषि को हानि पहुँचती है । जलवायु के दृष्टिकोण से यह क्षेत्र केवल पशुपालन तथा शुष्क कृषि के लिए अनुकूल है । इस क्षेत्र में उगने वाली वनस्पति में काँटेदार वृक्षों तथा झाड़ियों की अधिकता पाई जाती है ।
4. ऊष्ण तथा उपोष्ण कटिबंधीय स्टेपी जलवायु
थार के मरुस्थल तथा गंगा के मैदान के अधिक नम क्षेत्रों के मध्य स्थित पंजाब से थार तक फैले एक विस्तृत क्षेत्र में इस प्रकार की जलवायु पाई जाती है । इस क्षेत्र के दक्षिण तथा दक्षिण - पूर्व में अपेक्षाकृत नम क्षेत्र स्थित हैं । इस क्षेत्र की जलवायु उत्तरी तथा थार के मरुस्थल के बीच संक्रमण प्रकार की हैं । वर्षा 30.5 तथा 63.5 सेमी . के मध्य होती है तथा तापमान 12° से . से 35° से . के मध्य रहता है । ग्रीष्मकाल में तापमान ऊँचा होता है । तथा अनेक बार 45° से . तक पहुँच जाता है । वर्षा की मात्रा सीमित ही नहीं अपितु यह अत्यधिक अनियमित भी है । यह क्षेत्र केवल शुष्क कृषि तथा पशुपालन के लिए अनुकूल हैं । कृषि केवल सिंचाई की सहायता से सम्भव है।
5. ऊष्णकटिबंधीय मरुस्थली जलवायु
राजस्थान के पश्चिमी भाग तथा कच्छ के रन के कुछ भागों में इस प्रकार की जलवायु पाई जाती है इन क्षेत्रों में वर्षा बहुत कम होती है तथा कई बार कई वर्षों तक वर्षा नहीं होती । वर्षा की औसत मात्रा 30.5 सेमी . से कम , कई भागों में 12 सेमी . से कम होती है । इन क्षेत्रों में भीषण गर्मी होती है शीतकाल में तापमान अपेक्षाकृत नीचा होता है तथा इस क्षेत्र के उत्तरी भागों में जनवरी में औसत तापमान 11.60 से . तक गिर जाता हैं इस शुष्क जलवायु के क्षेत्र में वनस्पति आवरण बहुत ही कम है । केवल कॉटेदार पौधे और कुछ घास ही इस क्षेत्र में उग पाते हैं ।
6. आर्द्र शीतकाल वाली नम उपोष्ण जलवायु
इस प्रकार की जलवायु हिमालय से दक्षिण में एक विस्तृत क्षेत्र में पाई जाती है । इस जलवायु प्रदेश के दक्षिण में ऊष्णकटिबंधीय सवाना प्रदेश तथा इसके पश्चिम में ऊष्ण तथा उपोष्ण कटिबंधीय स्टेपी प्रदेश हैं । आर्द शीतकाल वाला यह जलवायु क्षेत्र हिमालय के साथ - साथ पंजाब से असम तक विस्तृत है तथा अरावली से पूर्व का राजस्थान का क्षेत्र भी इसी जलवायु प्रदेश के अंतर्गत सम्मिलित किया जाता है । इस प्रदेश में वर्षा का औसत 63.5 सेमी . से 125.4 सेमी . तक है । इसके उत्तरी भाग में , हिमालय से संलग्न क्षेत्र में वर्षा अधिक होती है । तथा दक्षिण की ओर पूर्व से पश्चिम की ओर भी कम होती जाती है । अधिकांश वर्षा ग्रीष्मकाल में होती तथा कुछ क्षेत्रों में पश्चिमी विक्षोभों के प्रभाव से शीतकाल में भी वर्षा होती है ।
7. पर्वतीय जलवायु
इस प्रकार की जलवायु का प्रमुख क्षेत्र हिमालय क्षेत्र है । पर्वतीय क्षेत्रों में सूर्य के सम्मुख तथा इससे विमुख ढालों पर तापमान में काफी विषमता पाई जाती है । हिमालय क्षेत्र में वर्षा की मात्रा सामान्यता पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है । पवनों के अभिमुख तथा विमुख ढालों के बीच भी वर्षा में महत्वपूर्ण अंतर पाया जाता है । सामान्यता हिमालय के दक्षिणी ढालों पर , जो दक्षिणी - पश्चिमी मानसून पवनों के अभिमुख ढाल हैं , वर्षा की मात्रा उत्तरी ढालों की अपेक्षा अधिक होती है । यही कारण है कि हिमालय के दक्षिणा भिमुख ढालों पर वनस्पति का आवरण भी सामान्यतः अधिक घना पाया जाता है ।
ऋतुएँ
बसंत चैत्र वैसाख मार्च - अप्रैल
ग्रीष्म ज्येष्ठ - आषाढ़ मई जून
वर्षा श्रावण - भाद्र जुलाई - अगस्त
शरद आश्विन - कार्तिक सितंबर - अक्टूबर
हेमंत मार्गशीष – पौष नवंबर - दिसंबर
शिशिर माघ – फाल्गुन जनवरी - फरवरी
भारत में निम्न चार प्रमुख ऋतुएँ होती हैं
शीत ऋतु
भारत में शीत ऋतु , दिसंबर , जनवरी व फरवरी माह होती है । शीत ऋतु के दौरान तापमान सामान्यतः 21°C रहता हैं । शीत ऋतु काल में उत्तरी भारत में वायु दाब उच्च रहता है व उत्तर - पूर्वी व्यापारिक पवनें स्थल से समुद्र की ओर प्रवाहमान रहती है जिससे शीत ऋतु शुष्क रहती है । शीत ऋतु में पश्चिमी विक्षोभ के कारण वर्षा होती है ऐसा क्षीण चक्रवातीय दबावों के कारण होता है पश्चिमी विक्षोभ की उत्पत्ति पूर्वी भूमध्य सागर में होती है जो पूर्व की ओर बढ़ कर पश्चिमी एशिया , ईरान अफगानिस्तान व पाकिस्तान को पार करके भारत पहुँचता है व मार्ग में कैस्पियन सागर व फारस की खाड़ी से प्राप्त आर्द्रता के द्वारा उत्तरी भारत में वर्षा करता है ।तमिलनाडु में शीतकाल में वर्षा होगी । शीत ऋतु में आने वाली व्यापारिक पवनों को उत्तर - पूर्वी मानसून कहते हैं । इन व्यापारिक पवनों से उत्तर भारत में रबी की फसल को विशेष लाभ होता है । इस समय पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में अत्यधिक हिमपात के साथ - साथ चेन्नई में भी भारी वर्षा होती है ।
ग्रीष्म ऋतु
भारत में मार्च - जून के मध्य ग्रीष्म ऋतु होती है । मार्च माह में सूर्य के कर्क रेखा की ओर गमन के कारण भारत में तापमान बढ़ने लगता है । तापमान बढ़ने के कारण दक्षिण का तापमान मार्च में 43°C तक पहुँच जाता है । उत्तरी भारत में यह स्तिथि मध्य मई में आती है । तापमान बढ़ने के साथ - साथ वायुदाब भी घटता जाता है इस समय निम्न वायुदाब का केन्द्र राजस्थान व नागपुर के पठारी क्षेत्रों में बनता है । मार्च - मई के मध्य वायु की दिशा व मार्ग में परिवर्तन होने से पछुआ पवन चलती है जो लू कहलाती है । ये अत्यंत उष्ण व शुष्क होती है । आद्र व शुष्क पवनों के मिलने से ऑधी चलती है व वर्षा होती है । पश्चिम बंगाल , कोलकाता में काल वैशाखी वर्षा इसका उदाहरण है । दक्षिण भारत व असम में मई माह में होने वाली वर्षा अत्यंत लाभदायक होती । असम में यह वर्षा चाय लिए लाभप्रद होती है व इसे चाय वर्षा कहते हैं । इस प्रकार केरल कर्नाटक में इसे आम्रवृष्टि कहते हैं । यः जूट चाय , कहवा , चावल के लिए उपयोगी होती है ।
वर्षा ऋतु ( मानसून )
भारत में वर्षा ऋतु का काल जून - सितंबर के मध्य रहता है ।
जून माह में सूर्य की कारणों कर्क रेखा पर सीधी पड़ रही रहती हैं । जिसके कारण पश्चिमी मैदानी भागों में पवन गर्म होकर ऊपर उठ जाती है व कम दबाव का क्षेत्र बन जाता है । कम दबाव का क्षेत्र इतना प्रवल होता है | कम दबाव क्षेत्र को भरने के लिए दक्षिणी गोलाई की व्यापारिक पवनें भूमध्य रेखा पार कर जब ये पवनें भारतीय उपमहाद्वीप की ओर बढ़ती हैं तो पृथ्वी की गति के कारण इनकी दिशा में परिवर्तन हो जाता है तथा ये दक्षिण - पश्चिम दिशा में बहने लगती हैं । इसी कारण जून - सितंबर के मध्य होने वाली वर्षा को दक्षिण - पश्चिम मानसूनी वर्षा कहते हैं । मानसून पवनें , व्यापारिक पवनों विपरीत परिवर्तनशील होती हैं । दक्षिणी गोलार्द्ध की व्यापारिक पवनों का उद्गम स्थल समुद्र में होता हैं जब ये पवनें भारतीय उपमाहद्वीप में प्रवेश करती हैं तो अरब सागर व बंगाल की खाड़ी से नमी प्राप्त कर लेती है । मानसूनी पवनें भारतीय सागरों में मई माह के अंत में प्रवेश करती है । दक्षिण - पश्चिम मानसून सर्वप्रथम लगभग 5 जून के आसपास केरल तट पर वर्षा करता है व महीने भर में संपूर्ण भारत में वर्षा होने लगती है । भारतीय उपमाहद्वीप की स्थलाकृति के कारण दक्षिण - पश्चिम मानसून निम्नलिखित दो शाखाओं में विभक्त हो जाता है ।
अरब सागर शाखा ,
बंगाल की खाड़ी शाखा ।
1.अरब सागर शाखा ( मानसून )
यह शाखा देश के पश्चिमी तटों , पश्चिमी घाटों महाराष्ट्र , गुजरात व मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में वर्षा करती है । पंजाब में बंगाल की खाडी से आनेवाली मानसूनी शाखा से मिल जाती है । यह शाखा पश्चिम घाटों पर भारी वर्षा करती है , परंतु दक्कन के पश्चिमी घाट के दृष्टि - छाया प्रदेश में होने के कारण इन क्षेत्रों में अल्प वर्षा हो पाती है । इसी प्रकार गुजरात व राजस्थान में पर्वत अवरोधों के अभाव के कारण वर्षा कम हो पाती है । दक्षिण - पश्चिम मानसून की दोनों शाखाओं में अरब सागर शाखा अधिक शक्तिशाली है और यह शाखा बंगाल खाड़ी की शाखा की अपेक्षा लगभग तीन गुना अधिक वर्षा करती है । इसके दो कारण पहला - बंगाल की खाड़ी शाखा का एक ही भाग भारत में प्रवेश करता है और दूसरा भाग म्यांमार व थाईलैण्ड की ओर मुड़ जाता है । अरब सागर मानसून की उत्तरी शाखा , गुजरात , कच्छ की खाड़ी व राजस्थान से प्रवेश करती है । यहाँ पर्वतीय अवरोध न होने के कारण इन क्षेत्रों में यह शाखा वर्षा नहीं करती तथा सीधे उत्तर - पश्चिम की पर्वतमालाओं टकराकर जम्मू - कश्मीर व हिमाचल प्रदेश में भारी वर्षा करती है । मैदानी भागों की ओर लौटते समय नमी की मात्रा कम होती है । अतः लौटती पवनों के द्वारा राजस्थान में अल्प वर्षा होती है ।
2.बंगाल की खाड़ी शाखा ( मानसून )
मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा उत्तर दिशा में बंगाल , बांग्लादेश व म्यांमार की ओर बढ़ती है । म्यांमार की ओर बढ़ती मानसून पवनों का एक भाग अराकम पहाड़ियों से टकराकर भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिम बंगाल व बांग्लादेश में आता है । यह शाखा हिमालय पर्वतमाला के समांतर बढ़ते हुए गंगा के मैदान में वर्षा करती हैं । हिमालय पर्वतमाला मानसूनी पवनों को पार जाने से रोकती हैं व संपूर्ण गंगा बेसिन में वर्षा होती है । उत्तर व उत्तर - पूर्व की ओर बढी शाखा उत्तर - पूर्वी भारत में भारी वर्षा करती है । मेध्ज्ञालय में तथा गारो खासी व जयंतिया पहाड़ियों कीपनुमा स्थाकृति की रचना करती है जिसके कारण यहाँ अत्यधिक वर्षा होती है । विश्व में सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान चेरापूंजी ( वर्तमान में मासिनराम ) इन्हीं पहाड़ियों में स्थित है ।
3.शरद ऋतु
शरद ऋतु उष्ण बरसाती मौसम से शुष्क व शीत मौसम के मध्य संक्रमण का काल है । शरद ऋतु का आरंभ सितंबर मध्य में होता है । यह वह समय है जब दक्षिण - पश्चिम मानसून लौटता है - लौटते मानसून दौरान तापमान व आर्द्रता अधिक होती है जिसे " अक्टूबर हीट " कहते हैं । मानसून के लौटने पर प्रारंभ में तापमान बढ़ता है परंतु उसके उपरांत तापमान कम होने लगता है । तापमान में कमी का कारण यह है कि इस अवधि में सूर्य की किरणें कर्क रेखा से भूमध्य रेखा की ओर गमन कर जाती हैं सितंबर में सीधी भूमध्य रेखा पर पड़ती हैं । साथ ही उत्तर भारत के मैदानों में कम दबाव का क्षेत्र इतना प्रबल नहीं रहता कि वह मानसूनी पवनों को आकर्षित कर सकें । मध्य तक मानसूनी पवनें पंजाब तक वर्षा करती हैं । मध्य अक्टूबर तक मध्य भारत में व नवंबर के आरम्भिक सप्ताहों में दक्षिण भारत तक मानसूनी पवनें वर्षा कर पाती हैं और इस प्रकार भारतीय उपमहाद्वीप से मानसून की विदाई नवंबर अंत तक हो जाती है । यह विदाई चरणबद्ध होती है । इसीलिए इसे “ लौटता दक्षिण - पश्चिम मानसून " कहते हैं ।
शरद ऋतु में बंगाल की खाड़ी से चक्रवात उठते हैं जो भारत व बांग्लादेश में भयंकर तबाही मचाते हैं । चक्रवातों के कारण पूर्वी तटों पर भारी वर्षा होती है ।
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