बुद्ध की विभिन्न मुद्राएं एवं हस्त संकेत और उनके अर्थ
बुद्ध अपने अनुयायियों में एक शिक्षक रूप में लोकप्रिय थे तथा उनके अनुयायी उन्हें दुनिया में जीवन के एक माध्यम के रूप में पूजते थे| उन्होंने इंसानों को दिव्य छवियों के निर्माण, ध्यान एवं पूजा, सोच में पवित्रता और मानसिक शांति की राह प्रदान की थी। बुद्ध के अनुयायी, बौद्ध ध्यान या अनुष्ठान के दौरान शास्त्र के माध्यम से विशेष विचारों को पैदा करने के लिए बुद्ध की छवि को प्रतीकात्मक संकेत के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
भारतीय मूर्तिकला में, मूर्तियाँ देवत्व का प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व करती है, जिसका मूल और अंत धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताओं के माध्यम से व्यक्त किया जाता है।
1. धर्मचक्र मुद्रा Dharmachakra Mudra
इसे “धर्म चक्र के ज्ञान” (टीचिंग ऑफ द व्हील ऑफ द धर्मा) के संकेत के रूप में भी जाना जाता है। यह बुद्ध के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में से एक है| उन्होंने धर्मचक्र मुद्रा का सर्वप्रथम प्रदर्शन ज्ञान प्राप्ति के बाद सारनाथ में अपने पहले धर्मोपदेश में किया था| इस मुद्रा में दोनों हाथों को सीने के सामने रखा जाता जाता है तथा बायें हाथ का हिस्सा अंदर की ओर जबकि दायें हाथ का हिस्सा बाहर की ओर रखा जाता है।
2. ध्यान मुद्रा Dhyan Mudra
इसे “समाधि या योग मुद्रा” के रूप में भी जाना जाता है। इस मुद्रा का निर्माण दोनों हाथों की सहायता से करते हैं जोकि गोद में रखे जाते हैं, दायें हाथ को बायें हाथ के ऊपर पूरी तरह से उंगलियां फैला कर रखा जाता है (अंगूठे को ऊपर की ओर रखा जाता है और दोनों हाथ की अंगुलियां एक दूसरे के ऊपर टिकी रहती है|) यह अवस्था “बुद्ध शाक्यमुनि”, “ध्यानी बुद्ध अमिताभ” और “चिकित्सक बुद्ध” की विशेषता की ओर इशारा करती है।
3. भूमिस्पर्श मुद्रा Bhumisparsa Mudra
इस मुद्रा को “पृथ्वी को छूना” (“टचिंग द अर्थ”) भी कहा जाता है, जोकि बुद्ध की ज्ञान प्राप्ति के समय का प्रतिनिधित्व करती है क्योंकि बुद्ध दावा करते हैं कि पृथ्वी उनके ज्ञान की साक्षी है। इस मुद्रा का निर्माण सीधे हाथ की सहायता से करते हैं जिसे दायें घुटने पर रखकर हथेली को अंदर की ओर रखते हुए जमीन की ओर ले जाया जाता है और कमल सिंहासन को छूआ जाता है।
4. वरद मुद्रा Varada Mudra
यह मुद्रा अर्पण, स्वागत, दान, देना, दया और ईमानदारी का प्रतिनिधित्व करती है। इस मुद्रा का निर्माण बाएं हाथ की मदद से करते हैं और दायें हाथ को शरीर के साथ स्वाभाविक रूप से लटकाकर रखी जाती है, खुले हाथ की हथेली को बाहर की ओर रखते हैं और उंगलियां खुली रहती है।
5. करण मुद्रा Karana Mudra
यह मुद्रा बुराई से बचाने की ओर इशारा करती है जिसका निर्माण तर्जनी और छोटी उंगली को ऊपर उठा कर और अन्य उंगलियों को मोड़कर किया जाता है। यह कर्ता को सांस छोड़कर बीमारी या नकारात्मक विचारों जैसी बाधाओं को बाहर निकालने में मदद करती है।
6. वज्र मुद्रा Vajra Mudra
यह मुद्रा उग्र वज्र के पांच तत्वों, अर्थात् वायु, जल, अग्नि, पृथ्वी, और धातु के प्रतीक को दर्शाती है। इस मुद्रा का निर्माण दायें हाथ की मुट्ठी और बायें हाथ की तर्जनी से करते हैं जिसमें बायें हाथ की तर्जनी को दायीं मुट्ठी में मोड़कर, दायें हाथ की तर्जनी के ऊपरी भाग से दायीं तर्जनी को छूते (या चारों ओर घूमाते) हैं।
7. वितर्क मुद्रा Vitarka Mudra
यह बुद्ध की शिक्षाओं के प्रचार और परिचर्चा का प्रतीक है। इस मुद्रा का निर्माण अंगूठे के ऊपरी भाग और तर्जनी को मिलाकर किया जाता है, जबकि अन्य उंगलियों को सीधा रखा जाता है। यह लगभग अभय मुद्रा की तरह है लेकिन इस मुद्रा में अंगूठा तर्जनी उंगली को छूता है।
8. अभय मुद्रा Abhaya Mudra
यह मुद्रा निर्भयता या आशीर्वाद को दर्शाता है जोकि सुरक्षा, शांति, परोपकार और भय को दूर करने का प्रतिनिधित्व करता है। इस मुद्रा का निर्माण दायें हाथ को कंधे तक उठा कर, बांह को मोड़कर किया जाता है और अंगुलियों को ऊपर की ओर उठाकर हथेली को बाहर की ओर रखा जाता है, जबकि बायां हाथ खड़े रहने पर नीचे लटका रहता है। यह मुद्रा “बुद्ध शाक्यमुनि” और “ध्यानी बुद्ध अमोघसिद्धी” की विशेषताओं को प्रदर्शित करती है।
9. उत्तरबोधी मुद्रा Uttarabodhi Mudra
यह मुद्रा दिव्य सार्वभौमिक ऊर्जा के साथ अपने आप को जोड़कर सर्वोच्च आत्मज्ञान की प्राप्ति को दर्शाती है। इस मुद्रा का निर्माण दोनों हाथ की मदद से करते हैं, जिन्हें हृदय के पास रखा जाता है और तर्जनी उंगलियां एकदूसरे को छूते हुए ऊपर की ओर होती हैं और अन्य उंगलियां अंदर की ओर मुड़ी होती हैं।
10. अंजलि मुद्रा Anjali Mudra
इसे “नमस्कार मुद्रा” या “हृदयांजलि मुद्रा” भी कहते हैं जो अभिवादन, प्रार्थना और आराधना के इशारे का प्रतिनिधित्व करती है। इस मुद्रा में, कर्ता के हाथ आमतौर पर पेट और जांघों के ऊपर होते हैं, दायां हाथ बायें के आगे होता है, हथेलियां ऊपर की ओर, उंगलियां जुड़ी हुई और अंगूठे एक-दूसरे के अग्रभाग को छूती हुई अवस्था में होते हैं।
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